बंगलूर । चांद की कक्षा के चक्कर लगा रहे चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मांडयूल (पीएम) को पृथ्वी की कक्षा में लाकर इसरो ने एक और बड़ी कामयाबी हासिल की। इस अनूठे प्रयोग से इसरो ने न केवल पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में यह समय भारत का है। देश ने इसके जरिए चंद्रमा पर भविष्य में भेजे जाने वाले मिशन को वापस लाने की क्षमता हासिल की।
चंद्रयान-3 के पीएम का मुख्य लक्ष्य लैंडर व रोवर को पृथ्वी की करीब 36000 किमी ऊंचाई पर स्थित जियोस्टेशनरी ट्रांसफर आबिरट (जीटीओ) से चंद्रमा की अंतिम धुव्रीय वृत्ताकार कक्षा तक ले जाना था।
इसरो ने बताया कि लैंडर-रोवर को इस कक्षा में पहुंचाने और अपने से अलग करने के बाद पीएम ने चंद्रमा की परिक्रमा की। इसमें लगे स्पेक्ट्रो-पोलरीमीटर हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ (शेष) उपकरण ने भी काम शुरू कर दिया था। शेप काम पृथ्वी का पर्यवेक्षण था, इससे मिले डाटा के जरिए हम सुदूर अंतरिक्ष में पृथ्वी जैसे दूसरे ग्रह की तलाश सकेंगे। शुरुआत में योजना थी कि शेप 3 महीने काम करेगा और फिर भी इसका जीवनकाल पूरा हो जाएगा।